गोपाल वनवासी से क्यो डरते हैं भ्रष्टाचारी?
LOCALNEWS31 यूट्यूब चैनल के संवाददाता सुरेश पांडेय के साथ गोपाल वनवासी की भेंटवार्ता
आप सभी दर्शकों का बहुत-बहुत स्वागत है। नमस्कार! मैं सुरेश पांडेय, लोकल न्यूज 31 के लिए। आज हमारे साथ बातचीत के लिए मौजूद हैं सोशल एक्टिविस्ट और आरटीआई एक्टिविस्ट गोपाल वनवासी जी।
बागेश्वर में समय-समय पर आरटीआई के माध्यम से बड़े-बड़े खुलासे करने वाले गोपाल वनवासी जी लगातार सिस्टम से टकराते हैं। उनकी नजर में जो भी खामियां होती हैं, उन्हें उजागर कर भ्रष्टाचार को रोकने और सिस्टम में सुधार लाने की कोशिश करते हैं।
आज हम उनसे जानेंगे कि वे यह सब क्यों करते हैं, अब तक उनके खुलासों से क्या लाभ हुआ है, और उन पर लगने वाले आरोपों पर उनका क्या कहना है। आइए, बातचीत शुरू करते हैं।
सवाल: वनवासी जी, पहले तो हमारे चैनल में आपका स्वागत है।
जवाब: धन्यवाद, धन्यवाद।
सवाल: जी वनवासी जी, यह बताइए कि अब तक आपने कौन-कौन से खुलासे किए हैं, और आप इन सब चीजों में इतनी रुचि क्यों लेते हैं?
जवाब: देखिए, सबसे पहले, मैं भारत का एक नागरिक हूं और एक जागरूक व्यक्ति भी हूं। मैं खुद को एक जागरूक नागरिक मानता हूं, इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं जनहित के कार्यों में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करूं। यदि कोई इसे उजागर नहीं करेगा, तो आप देख सकते हैं कि जल निगम में कितना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ था। अभी माइनिंग में भी फर्जी एनओसी लेकर कई लोग अवैध रूप से खनन कर रहे हैं। कई अधिकारी, विशेष रूप से बागेश्वर जिले के कार्यालय से जुड़े कुछ लोग, इसमें संलिप्त हैं। उन्होंने फर्जी एनओसी ली और फिर अपनी पत्नियों या रिश्तेदारों के नाम पर माइनिंग का काम शुरू कर दिया।
मैंने इस संबंध में लगातार दो शिकायतें आज जिलाधिकारी कार्यालय में दर्ज कराई हैं, और कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर भी संबंधित थाने को भेज दी है।
सवाल: जी, तो अब तक आपने जो खुलासे किए हैं, उन्हें आप अपने सोशल मीडिया के जरिए भी साझा करते हैं। इससे क्या फायदा हुआ? इन खुलासों का क्या लाभ हुआ है?
जवाब: देखिए, भ्रष्टाचार में कुछ हद तक कमी आई है। हमारे जिले में भ्रष्टाचार से जुड़े कार्यों में थोड़ी गिरावट हुई है, और विकास कार्यों में भी कुछ सुधार देखने को मिला है। यही हमारा मुख्य लाभ रहा है।
सवाल: अच्छा, जल जीवन मिशन से जुड़े आपके खुलासों को लेकर चर्चा यह थी कि आपने खुलासे तो किए, लेकिन उनका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। इस पर यह भी आरोप लगता है कि आप केवल चर्चा में आने के लिए बार-बार ऐसे मुद्दों को उठाते हैं।
जवाब: ऐसा नहीं है। जब मैंने जल निगम में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था और एफआईआर दर्ज करवाई थी, तब उसके बाद इसका प्रभाव साफ नजर आया। लोगों को पता है कि ठेकेदारों ने रात में टॉर्च की रोशनी में जाकर पाइप बिछाए हैं—पूरे गरुड़ क्षेत्र में और अन्य जगहों पर भी। इसका सीधा फायदा जनता को मिला है।
सवाल: क्या कोई और ऐसे मामले हैं जिन पर आपने खुलासा किया हो?
जवाब: अगर राज्य स्तर की बात करें, तो मैंने ₹600 करोड़ के चावल घोटाले को उजागर किया है। इसके अलावा, मैंने डीडीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फंड) के दुरुपयोग के खिलाफ भी आवाज उठाई है। इस मामले में भी विधिवत कार्रवाई की गई है। मैंने एफआईआर दर्ज करवाई है, और यह अभी प्रक्रिया में है। मुझे उम्मीद है कि जल्द ही प्रशासन इस पर ठोस कदम उठाएगा और दोषियों को जेल होगी।
सवाल: अच्छा, एक आरोप यह भी लगता है कि आप यह सब केवल चर्चा में आने या फिर पैसा ऐंठने के लिए करते हैं। इस पर क्या सच्चाई है?
जवाब: देखिए, जो भी काम हम करते हैं, वह पूरी पारदर्शिता के साथ होता है। अगर कोई यह आरोप लगाता है कि मैं पैसे लेता हूं, तो उन्हें इसे साबित करना चाहिए। वे यह बताएं कि मैंने किससे और कब पैसा लिया? अगर किसी के पास ऐसा कोई प्रमाण है कि मैंने किसी आरटीआई या शिकायत के बदले पैसों की मांग की है, तो वे खुलकर सामने आएं। मैं खुली चुनौती देता हूं—जो भी ऐसा आरोप लगाता है, वह सीधी एफआईआर दर्ज करवा सकता है।
सवाल: आप केवल बड़े लोगों से ही टकराते हैं। क्या इसके पीछे कोई विशेष कारण है?
जवाब: देखिए, बड़े उद्योगपति, पूंजीपति, और ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारी ही अक्सर भ्रष्टाचार के असली केंद्र होते हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में अक्सर छोटे अधिकारी फंसते हैं, जबकि असली मास्टरमाइंड—जो ऊंचे पदों पर होते हैं—बच जाते हैं। अगर हम सिर्फ छोटे अधिकारियों के पीछे पड़ेंगे, तो वे तो किसी के इशारे पर या संरक्षण में काम कर रहे होते हैं, लेकिन असली भ्रष्टाचारी बच निकलेगा।
इसीलिए मैंने एक रणनीति बनाई—क्यों न शुरुआत बड़े लोगों से की जाए? मैं बिना प्रमाण के कोई भी कदम नहीं उठाता। पहले मैं ठोस सबूत इकट्ठा करता हूं, फिर उन सबूतों को परखता हूं, और उसके बाद ही किसी के खिलाफ कार्रवाई करता हूं।
सवाल: अगर समाज सेवा करनी है, तो एक तरीका यह भी हो सकता है कि जन आंदोलन किया जाए। किसी गरीब को साथ लेकर या जनता को संगठित करके प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया जाए। मुझे लगता है कि यह भी एक प्रभावी तरीका हो सकता है। लेकिन आपने यह रास्ता क्यों नहीं चुना?
जवाब: देखिए, जन आंदोलन करने में कई बड़ी दिक्कतें आती हैं। इसमें बहुत सारे लोगों को इकट्ठा करना पड़ता है और उन्हें समझाना पड़ता है कि उनके क्षेत्र में क्या हो रहा है, जैसे कि पानी की समस्या क्यों बनी हुई है। उदाहरण के लिए, हमने मन खेत का मामला उजागर किया था, जिसमें 51-52 लाख रुपये की योजना थी, लेकिन केवल 7 लाख रुपये फील्ड में लगाए गए, जबकि 41-42 लाख रुपये निकाल लिए गए।
अगर मैं जनता को यह सब समझाने में समय लगाता, तो मेरा बहुत सारा वक्त बर्बाद हो जाता। हमारे पास कानूनी साधन उपलब्ध हैं, दिमाग भी है और कानूनी हथियार भी हैं, तो क्यों न हम उन्हीं का इस्तेमाल करें? सीधी-सी बात है कि मैं जन आंदोलन में क्यों उलझूं? जन आंदोलन करने से यह भी हो सकता है कि प्रशासन मुझे टारगेट करने लगे और कहे कि यह व्यक्ति हर बार भीड़ जुटाकर सरकारी काम में बाधा डालता है। इससे अनावश्यक विवाद खड़े हो सकते हैं, इसलिए मैंने यह रास्ता नहीं अपनाया।
सवाल: अभी आपने कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों पर आरोप लगाए हैं कि उनकी पत्नियों के नाम पर खड़िया की खदानें हैं। लेकिन अगर किसी की पत्नी के नाम पर खदान हो, तो इसमें गलत क्या है? यह तो एक प्रकार का रोजगार ही है, जो सरकार द्वारा वैध रूप से उपलब्ध कराया जाता है।
जवाब: आपकी बात सही है, लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य है। किसी सामान्य कर्मचारी की सैलरी मात्र 20-25 हजार रुपये होती है, और उसी सैलरी से उसे अपने परिवार का पालन-पोषण भी करना होता है। अब, अगर समाज में प्रचलित यह है कि एक खड़िया माइनिंग खदान को स्वीकृत कराने और शुरू करने में कम से कम 2 से 4 करोड़ रुपये लगते हैं, तो यह सवाल उठता है कि वह कर्मचारी इतनी बड़ी रकम कहां से लाया?
सवाल: लेकिन इसमें कुछ भी गैरकानूनी तो नहीं दिखता, जब तक यह रिश्वत के तौर पर साबित न हो?
जवाब: लीगल तरीके से भी खर्च होता है।
सवाल: लेकिन कानूनी प्रक्रिया में इतना ज्यादा खर्च तो नहीं आता?
जवाब: लीगल तरीके से भी बहुत खर्च आता है, लेकिन इसमें अवैध तरीके से किया जाने वाला खर्च कहीं अधिक होता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि वर्तमान समय में एक माइनिंग स्वीकृति कराने में लगभग 4-5 करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं।
सवाल: लेकिन यह जरूरी तो नहीं कि वह रकम उसकी सैलरी से ही आई हो? हो सकता है कि उसके पास पैतृक संपत्ति हो, या उसके पूर्वजों का अच्छा-खासा धन हो?
जवाब: अगर ऐसा है, तो वे इसे साबित करें। हमने जो आरोप लगाए हैं और जो शिकायत दर्ज करवाई है, अगर वह गलत हैं, तो वे इसे झूठा साबित करें। सीधी-सी बात है।
सवाल: हां, तो यही मैं जानना चाह रहा था कि अगर किसी परिवार के सदस्य के पास संपत्ति है, तो हो सकता है कि वे पारिवारिक रूप से संपन्न हों। यह भी तो संभव है?
जवाब: बिल्कुल, यह भी देखा जाएगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपनी सैलरी के अनुपात से अधिक संपत्ति अर्जित कर रहा है, तो यह साफ तौर पर एक अपराध की श्रेणी में आता है। यह ‘आय से अधिक संपत्ति’ का मामला बनता है और इस पर विधिवत कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
अब मान लीजिए कि किसी अधिकारी की पत्नी एक सामान्य गृहणी है, परिवार का कोई कॉरपोरेट बैकग्राउंड नहीं है, व्यवसायिक संबंध भी नहीं हैं, फिर भी वह दो-दो खदानें चला रही है, जिनकी कुल लागत 10-20 करोड़ रुपये है। माइनिंग स्वीकृति के लिए ही 10 करोड़ रुपये तक लगते हैं, और फिर आगे के खर्चों के लिए भी भारी रकम की जरूरत होती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इतनी बड़ी पूंजी कहां से आई?
अगर कोई कर्मचारी सीमित वेतन लेता है और फिर भी 10-20 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स चला रहा है, तो जाहिर है कि इसके पीछे कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।
सवाल: आप इतने बड़े खुलासे कब से कर रहे हैं?
जवाब: मैं काफी लंबे समय से इस तरह के काम कर रहा हूं। मैं पहले आरटीआई के जरिए पूरी जानकारी एकत्रित करता हूं, उसे कानूनी रूप से सत्यापित करता हूं, और फिर जब मुझे पुख्ता सबूत मिल जाते हैं, तब मैं उस मामले को सार्वजनिक करता हूं।
सवाल: क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी खुलासे के बाद आपको धमकियां मिली हों? जैसे जान से मारने की या डराने-धमकाने की?
जवाब: हां, ऐसी धमकियां मिलती रहती हैं, खासकर अधिकारियों की तरफ से। नाम तो मैं नहीं लूंगा, लेकिन एक बार किसी जिले के अधिकारी ने जब मेरी खबर देखी, तो उसने रिपोर्टर से पूछा कि “वनवासी तुम्हारा कोई रिश्तेदार लगता है क्या?” ऐसे ही अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने की कोशिश की जाती है।
इसके अलावा, जब भी मुझे कोई धमकी मिलती है, तो मैं उसे तुरंत संबंधित विभाग को ऑनलाइन रिपोर्ट कर देता हूं, ताकि कानूनी रूप से उस पर कार्रवाई हो सके।
सवाल: मुझे पता चला कि जब आपने ‘जल जीवन मिशन’ में हुए भ्रष्टाचार का खुलासा किया, तो आपके घर की जांच करने के लिए अधिकारी आ गए थे। वे यह देखने आए थे कि आपका मकान अवैध तो नहीं बना? क्या यह सच है?
जवाब: इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है। अगर मेरा मकान अवैध होता, तो अब तक मेरे खिलाफ कोई न कोई कानूनी कार्रवाई हो चुकी होती। हां, लेकिन उन्होंने मुझे परेशान करने की पूरी कोशिश की।
मेरा मकान एक बार नहीं, बल्कि 15-20 बार नापा गया। बार-बार जांच के नाम पर मानसिक उत्पीड़न किया गया। जब यह लगातार होने लगा, तो मैंने भी संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर देना शुरू कर दिया।
मैंने साफ कहा कि मेरे बच्चे परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, अगर उन्हें किसी भी तरह की मानसिक परेशानी होगी, तो इसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी। मैंने उनसे कहा कि अगर मकान में कोई गड़बड़ी है, तो एक-दो बार नापकर स्पष्ट कर दीजिए। बार-बार नापने का क्या मतलब? अगर कुछ गलत है, तो कार्रवाई कीजिए, और अगर नहीं है, तो परेशान करना बंद कीजिए।
सवाल: आप एक साधारण परिवार से आते हैं, उतने संपन्न नहीं हैं, लेकिन सुना है कि आपका घर काफी आलीशान है?
जवाब: नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। आप खुद आकर देख सकते हैं। यह सिर्फ अफवाहें हैं। देखिए, बोलने वाले कुछ भी बोल सकते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी व्यक्ति कैसे भी करके अपने रहने के लिए 15×30 या 30×30 का मकान तो बना ही लेता है। मेरे पास इससे बड़ा कुछ नहीं है।
सवाल: इस तरह से खुलासे करने और प्रभावशाली लोगों से टकराने में आपको डर नहीं लगता?
जवाब: डरने की कोई बात ही नहीं है। जब निस्वार्थ भाव से जनसेवा करनी है, तो डरना कैसा? जो सही है, उसके लिए खड़ा रहना ही चाहिए।
सवाल: तो आगे आपका क्या लक्ष्य है? क्या करने की योजना है?
जवाब: मेरा एक ही मकसद है—जो भी भ्रष्टाचार करेगा, उसे किसी भी हालत में छोड़ा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना भी बड़ा या छोटा व्यक्ति हो। अगर कोई व्यक्ति कानूनी रूप से गलत पाया जाता है, तो उसके खिलाफ हर संभव कार्रवाई की जाएगी।
चाहे मामला पुलिस विभाग से जुड़ा हो या न्यायालय में जाने की जरूरत पड़े, मैं पूरी तरह से तैयार हूं। एफआईआर करानी हो, कोर्ट में याचिका दायर करनी हो—मैं किसी भी कदम से पीछे नहीं हटूंगा।
इस काम में मैं अकेला नहीं हूं, मेरे साथ कई एडवोकेट्स का सहयोग भी रहता है। जब मैंने विभिन्न मामलों में न्यायालय के माध्यम से एफआईआर दर्ज कराई या याचिकाएं दायर कीं, तो कई वकीलों ने भी मेरी मदद की। वे जानते हैं कि मेरे पास सीमित आर्थिक संसाधन हैं, इसलिए मेरी पीआईएल या केस बहुत कम फीस में या निशुल्क दर्ज किए जाते हैं।
सवाल: क्या आप अभी किसी नए खुलासे पर काम कर रहे हैं? आज आप बागेश्वर आए हैं, तो क्या कोई बड़ी जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं?
जवाब: जी हां, मैं आरटीआई के जरिए लगातार जानकारी जुटा रहा हूं। मुझे पता चला है कि बागेश्वर के जिला अधिकारी कार्यालय में कुछ अधिकारी ऐसे हैं, जिनके परिवार के नाम पर खड़िया खदानें हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि इन खदानों की स्वीकृति के लिए जो एनओसी ली गई है, वह फर्जी है। इस मामले में मैंने विधिवत एफआईआर दर्ज कराना शुरू कर दिया है। कुछ मामलों में शिकायत दी है और कुछ में एफआईआर दर्ज हो चुकी है। बहुत जल्द हम इन अधिकारियों के नाम सार्वजनिक करेंगे।
सवाल: तो, धन्यवाद! व्यस्त समय में से आपने बातचीत के लिए वक्त निकाला, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब: धन्यवाद, पांडे जी!
सवाल: आप जनहित के मुद्दों को ऐसे ही उजागर करते रहें।
जवाब: देखिए, इनसे डरना नहीं है। अगर हमने जनसेवा करनी है, पत्रकारिता करनी है, तो डरने या झुकने की कोई जरूरत नहीं है। झुकना तब है जब मैं गलत काम कर रहा हूं, किसी के खिलाफ झूठ बोल रहा हूं, या झूठे आरोप (एलिगेशन) लगा रहा हूं। तभी मुझे डरने की जरूरत होगी। लेकिन अगर मैं सही हूं, तो डरने की कोई बात ही नहीं है। जब मेरे पास कानूनी प्रमाण हैं, जब सब कुछ पारदर्शी है, तो डर किस बात का?
खुलकर एक्सपोज़ कीजिए, खुलकर नाम लीजिए। इन लोगों के नाम लेना भी चाहिए और जनता को बताना चाहिए कि जो लोग हमारे संरक्षण के लिए बैठे हैं, वे ही किस तरह से हमारा शोषण कर रहे हैं।
जी, बहुत-बहुत धन्यवाद, सर!
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।
आप थे हमारे साथ सामाजिक कार्यकर्ता और सोशल एक्टिविस्ट, गोपाल वनवासी जी। उनका स्पष्ट मानना है कि इस तरह के खुलासों के पीछे उनका मुख्य मकसद सिस्टम में मौजूद खामियों को दूर करना और एक स्वस्थ प्रशासन एवं बेहतर व्यवस्था स्थापित करना है।
वे बताते हैं कि इस काम में कई जोखिम भी हैं, लेकिन उनका कहना है—“मुझे डरने की जरूरत नहीं है। इंसान एक ही बार मरता है। अगर इन चीजों को उजागर करने में कोई जोखिम उठाना भी पड़े, तो मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूं।”
लोकल न्यूज़ 31 के लिए, मैं सुरेश पांडे।